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नई दिल्ली: ऑस्कर अवार्ड 2019 के लिए नामित उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के एक किसान के जीवन संघर्ष पर बनी डॉक्युमेंट्री फिल्म ‘मोतीबाग’ की शुक्रवार को नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर में स्क्रीनिंग आयोजित की गई। शाम 7 बजे से शुरू हुई स्क्रीनिंग में उत्तराखंड से लेकर दिल्ली एनसीआर में रह रहे उत्तराखंड के साहित्य कला, संस्कृति, सामाजिक एवं पत्रकारिता से जुड़े तमाम लोग अपने पहाड़ के बुजुर्ग किसान के जीवन पर बनी डॉक्युमेंट्री फिल्म ‘मोतीबाग’ को देखने के लिए नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर पहुंचे।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड के पौड़ी जनपद के एक छोटे से गाँव सांगुड़ा के 83 वर्षीय बुजुर्ग किसान के संघर्ष पर बनी डाक्यूमेंट्री फ़िल्म “मोतीबाग” को ऑस्कर अवार्ड 2019 के लिए नामित किया गया है। एक घंटे की लघु फिल्म ‘मोतीबाग’ को तीन बार के राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डायरेक्टर निर्मल चंद्र डंडरियाल ने बनाया है।

फ़िल्म में पहाड़ की तमाम समस्याओं का ज़िक्र करते हुये बताया गया है कि अलग राज्य मिलने के बाद पौडी जिले की हालत और बदतर हुई है। इस जिले के 12 से 14 हज़ार गाँव पलायन के कारण ख़ाली हो चुके हैं। गाँव मे बुज़ुर्ग, असहाय महिलाओं और नेपाली कामगारों की वजह से ही गुज़र बरस हो रहा है। सरकार की घोर उपेक्षा के बावजूद जिस तरह 83 वर्ष के बुजुर्ग विद्यादत्त जैसे लोग अपनी कड़ी मेहनत और नई तकनीकी जानकारियों के साथ खेतीबाड़ी कर रहे हैं, अगर इसी तरह अन्य लोग भी खेतीबाड़ी की ओर ध्यान दें तो इससे जिले को ना सिर्फ पलायन की भीषण मार से बचाया जा सकता है बल्कि महानगरों में अभावों में जी रहे लोगों को घरवापसी की प्रेरणा भी मिल सकती है।

आपको बतादें कि स्वयं सरकारी नौकरी छोडकर अपने गाँव सांगुडा में खेती करने वाले विद्यादत्त शर्मा ने अपने खेत मे बिना रासायनिक खाद के 23 क़िलों वज़न का महामूला उगाकर यह संदेश दिया है कि महनत से खेती/बाग़वानी करने से हर साल पाँच- छह लाख रूपये की आय हो सकती है। नेपाली मूल के लोग जब यहाँ ख़ूब कमाई कर रहे हैं तो फिर उत्तराखंडी के लोग क्यों नहीं कर सकते?  फिल्म में यह भी बताया गया है कि दिहाड़ी पर काम करने वाले लोग गाँव छोडकर नेपाल नहीं लौटना चाहते।

गढ़वाली बोली और हिन्दी की मिश्रित भाषा मे अंग्रेज़ी सबटाइटल के साथ बनी एक घन्टे की फ़िल्म में बेरोज़गार, पलायन, मधुमक्खी पालन, जल संरक्षण समेत किसान की जूझती समस्याओं के अनेक मुद्दे उठाते हुये संदेश दिया गया है। सरकारी मदद की चिन्ता किये बग़ैर स्वयं  अपने बूते पर काम करने से भी सफलता हासिल की जा सकती है। फ़िल्म निर्देशन निर्मल डंडरियाल को पूरी उम्मीद है कि यह फ़िल्म आँस्कर पुरस्कार जीत कर एक नया कृतिमान स्थापित करेगी। उत्तराखंड के एक उपेक्षित गाँव के बुजुर्ग किसान के दैनिक संघर्ष पर बनी इस डाक्यूमेंट्री फ़िल्म का ऑस्कर जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिये नामित होना भी किसी कीर्तिमान से कम नही है।

अवतार नेगी, ग्राम बगासू

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