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नई दिल्ली: हिमालय दिवस पर गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान के सभागार में गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान के सानिध्य व धुंयाल लोक संगीत ग्रुप के सहयोग से पर्वतीय न्यूज द्वारा ‘हिमालय और हम, हिमालय के गीत’ हिमालयी जनसरोकारों से जुड़े प्रबुद्ध पर्यावरण विदों, साहित्यकारों, पत्रकारों, समाजसेवियों, सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े रंगकर्मियों की उपस्थिति मे आयोजित किया गया। कार्यक्रम का संचालन पर्वतीय न्यूज़ के संपादक प्रदीप वेदवाल तथा अध्यक्षता रमेशचन्द्र घिल्डियाल ने किया।

हिमालयी जन सरोकारो से जुड़े प्रबुद्ध वक्ताओं मे चारु तिवारी, डॉ. कुसुम नौटियाल, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, विनोद नोटियाल, लोकेश गैरोला, डॉ. सतीश कालेश्वरी व कैलाश शर्मा, डॉ. कुसुम भट्ट ने अपने संबोधन मे कहा, हिमालय जितना बड़ा है, उतना ही उसका गहरा रहस्य है। हिमालय को समझने के लिए उसके आयामों से जुड़ना होता है। हिमालय की उपयोगिता का लाभ करोड़ो लोगों तक है। हमारी संस्कृति हिमालय से ही प्रभावित है।

वक्ताओं ने कहा, 60 के दशक मे हिमालय को बचाने के लिए दुनिया के लोग इकठ्ठा हुए थे। सन 1962 में दिल्ली मे ‘हिमालय बचाओ’ संघर्ष आरम्भ हुआ। उद्देश्य था, हासिये के कगार पर बढ़ रहे हिमालय का संरक्षण, जिससे मानव हित बरकरार रहे। हिमालय संरक्षण हेतु आयोजित इस संघर्ष मे दलाई लामा भी शामिल हुए थे।

वक्ताओं ने कहा, हिमालयी लोगो के निरंतर पलायन से हिमालय खत्म हो रहा है। हिमालयी जन का पलायन हिमालय विरोधी नीतियों ने किया है, जो नीतियां सरकारें बनाती हैं। हिमालय तब बचेगा जब उसके लोग बचेंगे।

वक्ताओं ने व्यक्त किया, देवतुल्य हिमालय को बचाने के लिए उत्तराखंड में क्या हो रहा है? सरकार ने जमीनों को बेचने का इंतजाम कर दिया है। नए कानूनों के मुताबिक जमीन का नया खतरा पैदा हो गया है। जमीन उपयोग का मतलब बदल गया है। हिमालय की प्रासंगिता को खत्म करने की शुरुआत उत्तराखंड से ही हुई है। इस प्रक्रिया पर सबको चितंन मनन कर गम्भीरता से विचार-विमर्श करना होगा।

अपने वक्तव्य में वक्ताओं ने कहा, पवित्र हिमालय को बचाने के लिए हमारा भविष्य व विरासत दोनों ही हैं, गीतकारों ने चेतना जगाने के लिए गीतों की रचना की, जो हमें मनोरंजन करने के साथ-साथ दिशा भी देते हैं। कहा गया कि काफल, बुरांश हाथ से निकल पड़ा है। हिमालय पर लिखे जा रहे साहित्य के दर्द को याद करें।

वक्ताओं ने राय रखी, हिमालयी क्षेत्र के वासिन्दों की जो प्रकृति से जुड़े सांस्कृतिक सम्बन्ध हैं उसके साथ हिमालय दिवस मनाए जाए तो ज्यादा बेहतर होगा।

व्यक्त किया गया, हिमालय के बहाने हम अपने घर गांव, खेती, रीति-रिवाजों को याद कर रहे हैं। यह सब जागरूकता का परिचायक है। हिमालयी प्रकृति, जनजीवन व वहां के लोगों के सांस्कृतिक जीवन पर शोधकार्य होना शुभ संकेत है। व्यक्त किया गया, हम प्रवास में कहीं भी निवासरत हों, हिमालय के बेटा-बेटी हैं। हिमालय चेतन है, जिस पर बहुत कुछ लिखा गया है। नदियों का उदगम हिमालय से हुआ, सभी संस्कृतिया व सभ्यता नदी-घाटियों के इर्द-गिर्द उपजी। हिमालय की पीड़ा को समझना होगा। ऋषि-मुनियों की थाती को बचाना होगा। इसके प्रति उदासीन रवैया अपनाने पर कभी भी भयंकर प्राकृतिक घटना घट सकती है। केदारनाथ की घटना में हुई जनहानि व प्रकृति को हुए नुकसान से सबक लें।

वक्ताओं ने व्यक्त किया, हिमालय दिवस पर चर्चा, चेतना जगाने के लिए ही हो रही है। हिमालय मे बहुत सारी संस्कृतियां हैं। हिमालय सपना नहीं, हमारे अध्यात्म का केंद्र भी है। हिमालय जब तक है, जीवन है। हिमालय संसाधनों का बड़ा श्रोत है। उसके दोहन की विधियां प्रकृति के विपरीत बनाई जा रही हैं, जो बहुत बड़ा दुर्भाग्य है। बड़े-बड़े बांधों से जैव विविधता का ह्रास हो रहा है।

शहरीकरण बढ़ने से नुकसान हो रहा है। गर्मियों मे हिमालयी जंगलो की आग के धुंए से साफ सुथरी धरती देखना कल्पना मात्र रह गया है। शुद्ध पर्यावण का ह्रास हो रहा है। आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ करना है, तो हिमालय को दुरुस्त रखना होगा, जिस हिमालय की शुद्ध वायु दिल्ली तक आ रही है। ठोस पर्यावरण नीति न सिर्फ भारत बल्कि हिमालय से जुड़े अन्य देशों के लिए भी आवश्यक हो गई है। सार्थक पहल जरूरी है, नहीं तो हम हर चीज खो देंगे।

हिमालय के गीत सत्र में हिमालय पर रचित कविता व जनगीतों की प्रस्तुति ने खचाखच भरे सभागार मे बैठे श्रोताओं के मध्य समा बांधा। कवि व शिक्षक राम किशन जोशी द्वारा कविता पाठ किया गया –

पहचानो मुझे नजदीक से, पहचानो मैं हूं पर्वतराज…ये हालत तुमने बनाई है…उठो जागो, आगे बढ़ो, इस आंदोलन में शामिल हो…।

धुंयाल लोक संगीत ग्रुप के कलाकार, सतेन्द्र परथ्याल, राम चंद्र सती, गोपाल नेगी, वीरेन्द्र रावत, मीना कंडवाल,  आसी कोटनाला, कमलकांत ध्यानी, मनीष रावत, निसर्ग नेगी, रूपाली गोस्वामी, ललिता अधिकारी, और आस्था नौटियाल द्वारा मांगल गीत व जनगीतों का शानदार गायन किया।

प्रस्तुत हिमालय की कविताओं व जन गीतों ने जहां श्रोताओं को झकझोर, उनके मन मस्तिष्क में चेतना का संचार किया, वहीं प्रबुद्ध वक्ताओं के वक्तव्यों से स्रोताओं ने जाना कि हिमालय उनके जीवन के सरोकारों से कितनी गहराई तक जुडा हुआ है। उनकी संस्कृति दिल्ली प्रवास में भी हिमालय से कितनी प्रभावित है। आयोजकों  द्वारा सम्मानित वक्ताओं व हिमालय के गीत गायकों को सम्मान स्वरूप स्मृति चिन्ह व चौथान दर्पण पुस्तक भेंट की गई।