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नई दिल्ली: दिल्ली के पंचकुइया रोड स्थित गढ़वाल भवन में रविवार को गढ़वाली गजलकार पयाश पोखड़ा की पुस्तक “पैलागुन पोखड़ा” का लोकार्पण किया गया। “पैलागुन पोखड़ा” का विमोचन मुख्य अतिथि, उत्तराखंड के लोकगायक एवं गढ़वाली, कुमाउंनी, जौनसारी भाषा अकादमी के उपाध्यक्ष “हीरा सिंह राणा” की मौजूदगी में किया गया। उत्तराखंड के इतिहास में शायद गजल में यह पहली पुस्तक होगी। पुस्तक में एक से बढ़कर एक गजलें हैं और सबसे बड़ी बात यह कि इस किताब में पयाश पोखड़ा द्वारा गढ़वाली के मूल शब्दों का अत्यधिक इस्तेमाल किया गया है। जो नए लिखवारों को प्रेरित करेंगे। payash-pokhada

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार ललित केशवान ने की जबकि मंच संचालन बड़े ही सलीके व् खूबसूरत चुटकियों के साथ वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश ध्यानी ने किया। कार्यक्रम के प्रथम भाग में द्वीप प्रज्वलित करने के पश्चात् पुस्तक का लोकार्पण हुआ। पुस्तक की समीक्षा बड़े ही नपे तुले शब्दों में नामी व्यंगकार सुनील थपलियाल “घंजीर” व् वरिष्ठ साहित्यकार, रंगकर्मी मदन डुकलान ने की। तत्पश्चात लोक गायक हीरा सिंह राणा द्वारा बहुत सुंदर गीत प्रस्तुत किया गया। जिसे सुन दर्शक भावविभोर हो गए। कार्यक्रम के दूसरे भाग में सैकड़ों दर्शकों के बीच विराट कवी सम्मलेन का आयोजन किया गया। जिसमें ललित केशवान, जयपाल सिंह रावत (छिपड़ दा), मदन मोहन डुकलान, डॉ. सतीश कालेश्वरी, रमेश हितैषी, रमेश घिल्डियाल, चंदन प्रेमी, विमल सजवाण, वीरेन्द्र जुयाल ‘उपरि’, अनूप रावत, रामेश्वरी नादान, ममता रावत, मीना कंडवाल, गोविंद राम ‘साथी’, ओम ध्यानी, अतुल सती, आसिश सुंदरियाल, शंकर ढ़ोंडियाल, संतोष जोशी, द्वारिका चमोली, सुरेन्द्र सिंह ‘लाटा, उदय ममगाईं राठी, झबर सिंह, बलूनी जी आदि ने उत्तराखंड की समस्याओं व वास्तविक जीवन पर आधारित सुंदर काव्य पाठ किया।

“पैलागुन पोखड़ा” किताब की कुछ चुनिन्दा गजलें:-
अपणि कचकों तैं कनके लुकौं
अपणा गैरा घौ कनके सुखौं।
आंखा भोरिकि आँसु पैंछा दे ग्यवा
बता मि त्यारू उधार कनके चुकौं।

अनिगिर धर्यां मुच्छ्यळा अभितलक अमलटा छन
ये बामणा का कीसाउंद अभितलक स्यापटा छन।
सच थैं याद नि रखणु प्वड़दु लेाग इन ब्वलदिन,
तभी तक वो भि ब्वलण बच्याणा मा खटखटा छन।

आँखि खोल, कुछ न बोल, द्यखणा खुणै अभि छैंच छक्वै,
पाटि घुट्यो,ब्वळख्या उठो, ल्यखणा खुणै अभि छैंच छक्वै।
रौला-बौला गाड-गदनि समोदर भ्यटेणा खुणै जाणि रदिंन,
तू आॅखि मूंज, आँसु फूंज, बवगणा खुणै अभि छैंच छक्वै।।

ऐ जा गैळ्या गाँवा की खबर सार ल्ही जैई
गौं की स्यवा सौंळि अर नमस्कार ल्ही जैई।
फड़कीं फैड़ि छटकीं छज्जा तिड़कीं तिबरि,
आँख्यूं मा अपणि कूड़ि कु खंद्वार ल्ही जैई।।

फेरि एकदां तू जरसि सुर्वात कैर त सै,
कभि मी दगड़ भि मुलाकात कैर त सै।
त्यारू पीठ फरकाणु मीथै भलु नि लगुदु,
कभि-कभि अमणि-समणि ऐकि बात कैर त सै।।
गौं म खालि हूंदा कूड़ों अर गौं, गळ्या बाटा घाटों की ब्यथा परैं पयाश जी की कलम क्य बुनी खुद सूणा-
खन्द्वार हुयां कूडों थै घार समझणू चा,
उड्यार हुयां म्वारों थैं द्वारा समझणू चा।
जणेक घू फर जो छट्ट छोड़ जंदनि,
वों य सड़कि बाटों थैं यार समझणू चा।।

तिल जो मेरि हि जिकुड़ि मा लुकुणु छाई,
छुची! थ्तल पैलि त मीथैं भि पुछुणु छाई।
किलै ब्वनि छै मी खुणै दुन्या कु जयूं बित्यूं,
छुची! तिल पैलि त मीथैं भि समझुणु छाई।
तेरि सकल आँख्यूं मा द्यख्दा रै ग्यौं सदनि,
छुची! तिल पैलि त मीथै भि ख्वजुणु छाई।।

द्वारका चमोली